Saturday, January 26, 2013

मेरी कविता

मेरी कविता एक निराशा है 
उन शब्दों की जो कभी जी नहीं 
पाए, रोज़ एक असफल कलाकार 
की नाईं मैं बैठ जाता कुछ हर्फों 
का  पोषण लिए और लिपता जाता 
जैसे मरहम पट्टी करता हो वो 
डॉक्टर, फिर रोज़ उस नासूर को 
बढ़ता पा छोड़ देता उसे अपनी 
मौत के लिए। 

कविता एक निराशा 
है कवि के लिए, वह जीवन जो 
वो कभी जी नहीं पाया; ढूँढा 
था  जिसे कभी शब्दों मे मगर कभी  
उभार नहीं पाया। 

असंख्य शब्दों 
की मृत्यु का शोक है एक कविता ;शब्द 
जिसे वह पोषित न कर सका, शब्द जो 
उसका साथ छोड़ गए, जो बच गए 
कोरे कागज़ पर वह उसके सुने जीवन 
के प्रतीक थे; जिनमे उन शब्दों की नाईं 
कितनी बार मरा था वह, की एक कविता जी सके।

Friday, January 18, 2013

अधूरी कविता 2

सारी रात तुम्हे अपनी कविताओं 
में ढूढता रहा, पाई आधी कहानियां 
तुम्हारे बिखेरे हुए आधे रंग, और 
कितने चेहरों में छिपा एक धूमिल 
होता एक चेहरा, सभी टुकड़ों को 
सहेजा मैंने पर कहीं बन न पाई 
तुम्हारी आकृति।
 इस कृति में, इस समय में शायद कभी 
पा न सकूँ तुम्हेजितना भी पाया 
 खुद को तुम्हारे समीप उतनी ही दूर हो
 जाती तुम्हारी आकृति। 
अब इस कृति से दूर, तुमसे दूर 
मैं ले जाना चाहता हूँ खुद को 
शायद इसी में मिल जाए तुम्हारी 
आकृति और कर दूँ इसे अंत; 
ये सूना अधूरा जीवन। 

अधूरी कविता

जीवन में ऐसा अलगाव नहीं 
की दूर हो जाऊं तुमसे,  
पर अब लगता है दूर हो कर 
ही बना पाऊंगा मैं घर अपने 
और तुम्हारे न होने के।  

अच्छा होता ये अलगाव के 
घर, ये पास रह कर भी दूर 
होने के आभास भी हम साथ 
ही बनाते, शायद ऐसा कुछ होता 
जिसे यादों में रख कर कहते की 
कुछ तो साझा किया  और बनाया 
हमने: ये साथ न सही, महसूस होता 
यह एकाकीपन तो हमने साथ जिया। 

शायद इसी शून्य में हमारे लौटने 
का रास्ता निकल आये?