Monday, February 6, 2012

उस खत की तलाश में

मैं अपनी महसूसियत को सघन करूंगा,
इसे जाड़ों की शुरुआती बर्फ में पिघलाऊंगा,
और अपनी स्‍मृति की लोह खराद में ढालूंगा
ताकि अपने भीतर की उष्‍मा हेतु
उम्‍मीदों का सूत सिलने के लिए एक सूई गढ़ पाऊं

सर्दी हाइबरनेशन के लिए मेरी ऋणि है,
वह उस एकमात्र गली पर कोहरा पसरा देती थी जिसे मैं जानता था 
और धुंध फैला देती थी उस अकेली खिड़की पर जिधर मैं देखता था 
हिमखंडों को उलटना-पलटना ही वह एकमात्र सांस थी 
जिसे मैं छू पाया
और सपनों को स्‍थगित करना ही अकेली स्‍मृति
जो बची थी मेरे पास

बसंत फिर भी इस सर्दी को पिघलाएगा
मेरे उन हरे बेनाम और बेपता लिफाफों में रखे ख़तों को ले जाते हुए
और निर्वासित ग्रीष्‍म
कोटों में उस ख़त को तलाशता मृत देहों को उलटता-पलटता रहेगा
जिसे मेरे पते पर पहुंचाना है

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translation of my poem "In search of the Letter" http://imprintsonthesandsoftime.blogspot.com/2011/12/in-search-of-letter.html by Pramod Pathak