मैं पानियों पर लिखता रहता हूँ एक नामुमकिन सा स्वप्न
इसे मुमकिन करने के लिए ना ही कोई कलम बनी है और ना ही कोई रंग
बस कोरी यादें भर हैं
समंदर की चंचल लहरों पर उकेरने के लिए
पानियों पर ही
लिखा जायेगा मेरा इतिहास
ना अमर होने की इच्छा है
और ना ही याद रखे जाने का कोई मोह
ओस की बूंदों की नियति तो
रोशनी में चमकना
और सूरज द्वारा निगल लिए जाना ही होता है
रोशनी तब चमकती है
जब ऊष्मा उसे निगलने को होती है
जिस उष्णता ने मुझे गढ़ा है
किसी रोज वही मुझे चमकाएगी
और निगल भी डालेगी.
.......................................................................................
इस कविता के अनुवाद के लिए मै अपने मित्र प्रमोद को सहृदय धन्यवाद देना चाहूँगा. कविता एक वो होती है जो कवि लिखता है और अपनी भाषा में लिखता है मगर जब अनुवाद होती है तो वो अपने आप में ही एक अलग कविता बन जाती है जो कभी उसके मूल रूप से भी अधिक सुन्दर हो जाती है, और इस बार भी यही हुआ है. ये अनुवाद मुझे अपने मूल कविता से भी अधिक सुन्दर लगा.
इसे मुमकिन करने के लिए ना ही कोई कलम बनी है और ना ही कोई रंग
बस कोरी यादें भर हैं
समंदर की चंचल लहरों पर उकेरने के लिए
पानियों पर ही
लिखा जायेगा मेरा इतिहास
ना अमर होने की इच्छा है
और ना ही याद रखे जाने का कोई मोह
ओस की बूंदों की नियति तो
रोशनी में चमकना
और सूरज द्वारा निगल लिए जाना ही होता है
रोशनी तब चमकती है
जब ऊष्मा उसे निगलने को होती है
जिस उष्णता ने मुझे गढ़ा है
किसी रोज वही मुझे चमकाएगी
और निगल भी डालेगी.
.......................................................................................
इस कविता के अनुवाद के लिए मै अपने मित्र प्रमोद को सहृदय धन्यवाद देना चाहूँगा. कविता एक वो होती है जो कवि लिखता है और अपनी भाषा में लिखता है मगर जब अनुवाद होती है तो वो अपने आप में ही एक अलग कविता बन जाती है जो कभी उसके मूल रूप से भी अधिक सुन्दर हो जाती है, और इस बार भी यही हुआ है. ये अनुवाद मुझे अपने मूल कविता से भी अधिक सुन्दर लगा.
main in panktiyon me ek achhe kavi ke samne aane kii aahat sun pa raha hun...manohar bhai, itne hi dhiraj aur saghan judav se samne laiye apne kavi ko...dhire dhire mukhar ho...andar se bahar aur bahar se andar ki yatraon ki aawajahi ho...nirantar...anathak...shubhkamnayen
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता मनोहर भाई. अनुवाद भी बहुत बढ़िया किया है प्रमोद जी ने.
ReplyDeleteDhanyawad Anurag ji or Manoj ji...
ReplyDeletemaine itna achaa anuwaad bahut kam he dekha hai....immortality padhte waqt mujhme jin bhavnaon ka udgaar hua...jaisa mujhe mehsoos hua...bilkul waisa he mujhe amarta padhte waqt hua...ek jo akelapan immortality me hai bilkul waisa he akelapan amarta me hai....in dono he kavitaon me kavi apne akelepan,apne dukhon ka hisaab kisi aur se nahi maang raha....manohar aur pramod ji dhanyawad itni achii kavita aur anuwaad ke liye....
ReplyDeletedude you write deep and i dnt thin that many can understand your feelings...
ReplyDeletejump of the cliff and fall in the depth of ur poetry.. uff filmy ho gaya.. but love the way u write ;)
ReplyDelete