imprints on the sands of time
Saturday, December 11, 2010
कही
चुप चाप इस गुम सुम रात में
कही से एक बूँद टपकता है
और कही एक शोर सो जाता है
कही एक नज़र खो जाती है
कही एक याद उभर आती है
1 comment:
PPP
December 20, 2010 at 3:52 PM
Sahi:)
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Sahi:)
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