Saturday, December 11, 2010

दिवाली के रंग

कुछ रंग  ढूढने निकला था घर से
हाथ में कुछ फुलझरियां  थी और पटाखे भी
मगर वो चाँद धूमिल होता दिखा
तारों की याद में

हर दिवाली मुझे एहसास दे जाती है रंगों का
कुछ पसरे रंग, कुछ बोलते रंग
कुछ मुस्कुराहटो में बिखरे उदासियों के रंग

कही टीम टिमाती रोशनिया, कही अँधेरा घने कोहरे सा
कही एक मुस्कान, कही एक लाचार सी हँसी
हर कोई लगा था रंगों को समेटने में
कुछ  खरीद कर, कुछ उसे भूला कर

भूला हुआ रंग भी तो समेटा जाता है
कभी यादो में तो कभी सपनो में

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