Monday, September 26, 2011

भूला-बिसरा प्‍यार

क्‍या वह पूनम की नशीली रात थी ?
कि तुम गमगीन, सरल और जटिल प्‍यार की
शिकायत करते मेरी बगल में आ बैठी

नकार से जन्‍मे दुख में और
जीवन के उन क्षणों में जब सब कुछ खालीपन में खत्‍म होता जा रहा था  
एक-दूसरे के निकट आते हुए दो प्रेमियों ने समय के और स्‍मृति ने प्रेम के खिलाफ 
अपनी एकाकी जंग छेड़ रखी थी
this is a translation of the poem "Forgotten Loves" http://imprintsonthesandsoftime.blogspot.com/2011/07/forgotten-loves.html by Pramod ji. Thanks again for the wonderful translation.

Tuesday, September 20, 2011

साथ

साथ है या नहीं शून्य की दीवारों से टकराकर तुम जान लोगी
फलक पर बीछे इस अंतहीन सत्य को समेट लेने तो दो
जीवन का गोद खाली मिला क्यों छलकती आसुओं से पूछ लेने तो दो
खलिश न रहेगी मुझसे, इंसान को बटा हुआ जब पाओगी
बटे हिस्सों के आदि-अंत जब तुम देख न पाओगी, सिमट कर
मेरी याद को नए पंख लगा देना
इन्ही लाशों में जलकर नया जन्म लूँगा मै तुम्ही से

Sunday, September 18, 2011

कल्पना कि उड़ान

क्या कल्पना कि उड़ान मुझे भी बेध कर अपने आपको मुक्त कर पाएगी? 
या फिर एक खामोश उदासी का सत्य हि मुंह बाए खडा रहेगा
निर्लिप्त आकाश गंगाओं के असीम विस्तार में? 
क्या स्वप्न की उस घड़ी मे कोइ न होगा
जब टुकड़े चुन-चुन कर आईना एक चेहरा उभार रहा होगा? 
क्या यह अन्तिम रहस्य की शिला भी उजड जाएगी 
अपने अस्तित्व को जानने से पहले? 

Sunday, September 11, 2011

एक अजनबी मौसम

एक अजनबी मौसम, एक अजनबी होता शहर और एक अजनबी शब्द का साथ. रात कि विरानीयों को तलाशने के लिए और कितने आवारा दिन अपने कंधों पर लादे फिरुंगा. फफक कर आँसु ही क्यों  नही छलक आते? कुछ यादें बिफर हि क्यों नही जाती? कुछ लम्हें टूट हि क्यों नही जाते?