imprints on the sands of time
Sunday, September 11, 2011
एक अजनबी मौसम
एक अजनबी मौसम, एक अजनबी होता शहर और एक अजनबी शब्द का साथ. रात कि विरानीयों को तलाशने के लिए और कितने आवारा दिन अपने कंधों पर लादे फिरुंगा. फफक कर आँसु ही क्यों नही छलक आते? कुछ यादें बिफर हि क्यों नही जाती? कुछ लम्हें टूट हि क्यों नही जाते?
1 comment:
लीना मल्होत्रा
October 5, 2011 at 7:50 AM
gahri vedna..
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gahri vedna..
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