स्व से ऐसी विरक्ति में
जहाँ सत्य
प्यार की उष्णता से भरी भावनाओं के साथ
तुम्हें उकेरते हुए नसीब की
विडंबना बरकर व्याप जाता है
वहाँ जीवन का संवाद बहुत मुश्किल था
अपने ही तनावों में धँसा मैं, तुम्हारे सत्य को अपने में खोजने की कोशिश कर रहा हूँ
तुम कहाँ थी ?
सत्य में, अनुभूति में या खुद मुझमें
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सहृदय धन्यवाद् मेरे मित्र प्रमोद जी को इस कविता का अनुवाद करने के लिए.