Sunday, November 27, 2011

कि वह सो रही है


शब्दों को मत धकेलो 
कि वह सो रही है
और रात अब भी उसकी आँखों में सघन है
जरा उसके पास बैठो और उसके सोफे पर भटकते हाथों पर नज़र फिराती उन आँखों  को निहारो

वह क्या सपना देख रही है
क्या सूरज के अंदर झाँकने 
और ड्रेगन फ्लाई के लिली पर मँडराना शुरू करने के बाद भी वह उसे याद रहेगा

 उसने एक बार मुझसे कहा था
सपनों की कोई समृति नहीं होती
उन्हें छूने मत जाओ वे तो सर्वोपरि होते हैं
उन्हें क्षत- विक्षत सड़क पर बारिश के नन्हें चश्मो की तरह सोए रहने दो
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translation of my poem "She is sleeping" by Pramod Ji. You can read his poems on his blog http://samandarkesapanomechaand.blogspot.com/

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