Monday, February 28, 2011

Tales of love

I am often amazed
at the tales of love
where eyes dream,
heart desires and the
greens sing a song
of the beloved

Caught between the
sighs of the moon
cuddled emotions
flare up memories
and slowly, with open
arms, those stories
 embrace one
which waits its turn
to be etched in shifting
sands of remembrance

who said love will bless
you, believe in love
for love needs patience

and yet looking
at those eyes with half
moons peeping out under
the shadow of clouds
I know that love is a
struggle against memory





Saturday, February 19, 2011

Passion

I always touch even when it whispers,
peeping through closed windows,
and names it knows not..
sometimes I hold it long for it's fragile
and slips through my fingers like sublime
for it's passion

Wednesday, February 16, 2011

मिस्र पर एक नज़्म


हमारे मित्र जिया खान साहब ने एक मिश्रा पेश किया है मिस्र के ऊपर इस नज़्म में कुछ फैज़ की रवानगी भी है और कुछ उनकी अपनी दीवानगी भी. मुझे नहीं पता उन्होंने पहले कुछ लिखा भी हो, मगर मेरे ख्याल में ये उनकी पहली नज़्म है, जिसे मै अपने ब्लॉग पर पेश करना चाहता हू, उन लोगो के लिए जो अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे है, जो स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे है और जिया भाई की ये नज़्म भी उसी की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती है. क्या हम अपने घरो में चिराग नहीं जलाएंगे, क्या उनके घरो के चिराग से ही खुश हो जायेंगे...क्या मिश्र एक होगा या फिर अनेक मिश्र अभी होने बाकी है..यही सवाल हम पूछते है. पेश है उनकी ये नज़्म.....
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क्या मुमकिन है के जो लाज़िम है?
तुम कौन सा मंज़र देखोगे ?
ऐ अहले शिफा, ऐ महदूद-ए-हरम
औरों की शहादत तशरीह कर
तुम खूब तमाशा देखोगे.
...
ये ज़ुल्मों सितम के कूहे गिरां
क्या रूई की तरह उड़ जायेंगे?
खुशफहमी है दिल जोई है
कल वक़्त-ऐ-सुबह बतलायेंगे

कल खुदगर्जी की, ख़ामोशी की
तहरीर चलायी जाएगी
लालच और मुनाफे की
ज़ंजीर बनाई जाईगी
जो मह्कूमों के पाओं में
तुम खुद पहना कर आओगे

फिर तर्क-e-सितम कानूनों के
मशवरे बनाये जायेंगे;
जो समझ गए सो समझ गए
कुछ खामोश कराये जायेंगे!
जो अब भी मिस्र का आधा मिसरा है
कल आशार तुम्हारे झुटलायेंगें

कुछ तख्ह्त गिराए जाते हैं
कुछ ताज उच्छाले जाते हैं
फिर अम्रीका का हिकमत से
कुछ इस्रेल की चाहत से
मेमार कराये जाते हैं
और अगर ज़रूरत आन पड़ी तो
अक़ल-ऐ-लौह से UN के
इराक़ बनाये जाते हैं

जब मिस्र का मोमिन लड़ता था
तब हिंद का दहका पिटता था
तुम्हें उनकी शहादत खूब लगी
पर अपनी सदाक़त भूल गए

जब तक न गुल-ए-ताहीरी को
हर बाघ का बुलबुल हासिल हो;
जब तक न नारे जुम्बिश को
हर मुल्क की बेदारी हासिल हो;
जब तक न मिस्र की हलचल से
दुनिया का समंदर उमड़ेगा
जब तक न कल्बे सियाह ख़ामोशी से
इन्साफ की चीखें फूटेगी
बस नाम रहेगा हल्ला का
जो तब भी था और अब भी है
तो क्या मुमकिन है की जो लाजिम है
तुम वो ही सवेरा देखोगे?

जब सर्द रगों में आशिक़ के
एहसास रवां हो जाएगी
जब इश्क का मतलब बदलेगा
क़ुरबानी वफ़ा हो जाएगी
जब तनहा मिस्र के शम्मे को
हर मुल्क का बाज़ू थामे गा
मुमकिन है की तुम भी देखोगे
वो दिन का जिस का वादा है
जो लाजिम भी हो मुमकिन भी
Ziauddin Khan 

Saturday, February 12, 2011

तिनके

उस अंतहीन सड़क पर
कहीं तो एक नीम का पेड़ भी होगा
जो रोज़ उस चिड़िया की राह तकता  होगा,
जो सरहद के उस पार से
तिनके चुन कर
मेरे आँगन में बिखेर जाती है

मैं रोज़ उन तिनको को
घंटो निहारता,
उन पर पड़ती 
एक एक किरण चुरा लेता,
उनकी गर्माहट समेट लेता अपने कण-कण में, 
जेब में छुपा ले जाता कुछ
निश्चल - निविड़  रातों के लिए, 
उन्ही तिनको  में खोया,
अक्सर  मैं
अपने आपको उसी  नीम के नीचे पाता

Sunday, February 6, 2011

आँसु

एक शून्य की तरह दर्द अपने को  फिर से गढ़ता है
एक स्वप्न की तरह अपने कपडे बिखेरता जाता है
तुम्हारी कामनाओं के अंधेरे कमरों में

तुम उन्हें अपनी इस दुनिया में क्यों नहीं बुलाती
उन आँसुओं से लिखे  बर्फीले ख़तों के ज़रिए 
जो कब के सूख चुके है?

Saturday, February 5, 2011

Tears

Like a circle, pain reinvents itself
like a dream it sheds its clothes
in the dark antechamber of your desires
why don't you invite them into this world
with frozen letters from the tears
which have long dried out?