उस अंतहीन सड़क पर
कहीं तो एक नीम का पेड़ भी होगा
जो रोज़ उस चिड़िया की राह तकता होगा,
जो सरहद के उस पार से
तिनके चुन कर
मेरे आँगन में बिखेर जाती है
मैं रोज़ उन तिनको को
घंटो निहारता,
उन पर पड़ती
एक एक किरण चुरा लेता,
उनकी गर्माहट समेट लेता अपने कण-कण में,
जेब में छुपा ले जाता कुछ
निश्चल - निविड़ रातों के लिए,
उन्ही तिनको में खोया,
अक्सर मैं
अपने आपको उसी नीम के नीचे पाता
कहीं तो एक नीम का पेड़ भी होगा
जो रोज़ उस चिड़िया की राह तकता होगा,
जो सरहद के उस पार से
तिनके चुन कर
मेरे आँगन में बिखेर जाती है
मैं रोज़ उन तिनको को
घंटो निहारता,
उन पर पड़ती
एक एक किरण चुरा लेता,
उनकी गर्माहट समेट लेता अपने कण-कण में,
जेब में छुपा ले जाता कुछ
निश्चल - निविड़ रातों के लिए,
उन्ही तिनको में खोया,
अक्सर मैं
अपने आपको उसी नीम के नीचे पाता
अच्छी कविता...
ReplyDeletesunar hai
ReplyDeleteBeautiful- I can see the effects of Roman living :)
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