एक शून्य की तरह दर्द अपने को फिर से गढ़ता है
एक स्वप्न की तरह अपने कपडे बिखेरता जाता है
तुम्हारी कामनाओं के अंधेरे कमरों में
तुम उन्हें अपनी इस दुनिया में क्यों नहीं बुलाती
उन आँसुओं से लिखे बर्फीले ख़तों के ज़रिए
जो कब के सूख चुके है?
एक स्वप्न की तरह अपने कपडे बिखेरता जाता है
तुम्हारी कामनाओं के अंधेरे कमरों में
तुम उन्हें अपनी इस दुनिया में क्यों नहीं बुलाती
उन आँसुओं से लिखे बर्फीले ख़तों के ज़रिए
जो कब के सूख चुके है?
सुन्दर कविता है .
ReplyDelete