Saturday, February 12, 2011

तिनके

उस अंतहीन सड़क पर
कहीं तो एक नीम का पेड़ भी होगा
जो रोज़ उस चिड़िया की राह तकता  होगा,
जो सरहद के उस पार से
तिनके चुन कर
मेरे आँगन में बिखेर जाती है

मैं रोज़ उन तिनको को
घंटो निहारता,
उन पर पड़ती 
एक एक किरण चुरा लेता,
उनकी गर्माहट समेट लेता अपने कण-कण में, 
जेब में छुपा ले जाता कुछ
निश्चल - निविड़  रातों के लिए, 
उन्ही तिनको  में खोया,
अक्सर  मैं
अपने आपको उसी  नीम के नीचे पाता

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