Monday, September 2, 2013

स्‍मृतियां संपादित करतीं समय को

स्‍व एक अव्‍यवस्थित शेल्‍फ 
सपनों की धूल से अंटा 
जिसके कोने में रखे टूटे शब्‍द और रंग 
चमकते हैं किसी थकी हुई रात में 
मरसिए की तरह टंगा है संगीत 
जंग खाए दिनों की अलगनी पर 
किसी कथा की धूल झाडो तो 
गिरती है जूतों पर और आप 
अपरिचित बांहों में 

अजनबी सा अतीत 
इस विदेश में 
असंगत कलाकृतियों की बाढ के बीच 
तुम्‍हारे चेहरे की याद दिलाता 
और उस दिन की 
जब आमने सामने बैठे हुए 
शब्‍दों ने कलम का साथ देने से 
इनकार कर दिया था 

स्‍मृतियां संपादित करतीं समय को 

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