जिसे हम अपना आत्म कहते हैं
वह एक अव्यवस्थित सी शेल्फ है;
यह सपनों की छीलन को
झाड़ती रहती है व टूटे हुए ऐसे शब्दों व रंगों के लिए
एक कोना छोड़ देती है जो किसी उबाऊ व थकान भरी रात में खिल उठते हैं.
संगीत किसी जंग लगे दिन पर एक शोक-गीत की तरह लटका रहता है,
किसी कहानी की गर्द जूतों पर चमकती है
और आप किसी अजनबी की बाहों में ढह जाते हैं.
इस परदेसी मुल्क में
अतीत
कला की बाढ़ नुमा एब्सर्ड काम जितना ही एलियन होता है
और आपको उस चेहरे व दिन की याद दिलाता रहता है
जब असफल शब्दों के सामने बैठे एक पैन ने लिखने से इंकार कर दिया था.
समृति समय को एडिट कर देती है.........................................................................................
A translation of "Memory edits time" http://imprintsonthesandsoftime.blogspot.it/2013/07/memory-edits-time.html by Pramod http://samandarkesapanomechaand.blogspot.it/
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