imprints on the sands of time
Tuesday, February 8, 2022
The obsession of sisyphus
In repetition I find
my release. like
Sisyphus who paused
for a while to ponder:
did he think
it was all futile?
or did he notice
that each moment
in being repeated
was always new?
Monday, February 7, 2022
जिंदगी की जद्दो जहद में
अक्सर जिंदगी की जद्दो जहद
में वास्ता दरवाज़ों से होता
एक दरवाज़े से प्रवेश
एक से निकास
एक आने से पहुंचने
के बीच सिमटी जिंदगी
जो स्थिर है
जो गौण है
वह उसका हिस्सा नहीं
जैसे यह बालकनी
मैं आदत में एकांत लिखता हूँ
मैं आदत में एकांत
लिखता हूँ , लिखते
एकांत खत्म हो
जाता है , जो बचता
है एकांत जैसा उसे
मैं वैसा ही छोड़ देता
हूँ.
जो बचा है
वही हमारी सीमा
है , जिसमे गिरने का
खतरा हमेशा बना
रहता है. मैं गिरने
से पहले लिखता हूँ
की कुछ बच जाऊं
किसी शेष की तरह
नहीं , किसी फुटनोट
की तरह.
गिरना मेरा अंत नहीं
पर वो है जहाँ से
यह कविता शुरू होती है,
शायद मैं भी.
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