मैं आदत में एकांत
लिखता हूँ , लिखते
एकांत खत्म हो
जाता है , जो बचता
है एकांत जैसा उसे
मैं वैसा ही छोड़ देता
हूँ.
जो बचा है
वही हमारी सीमा
है , जिसमे गिरने का
खतरा हमेशा बना
रहता है. मैं गिरने
से पहले लिखता हूँ
की कुछ बच जाऊं
किसी शेष की तरह
नहीं , किसी फुटनोट
की तरह.
गिरना मेरा अंत नहीं
पर वो है जहाँ से
यह कविता शुरू होती है,
शायद मैं भी.
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