Monday, February 7, 2022

मैं आदत में एकांत लिखता हूँ

 

मैं आदत में एकांत 

लिखता हूँ , लिखते 
एकांत खत्म हो 
जाता है , जो बचता 
है एकांत जैसा उसे 
मैं वैसा ही छोड़ देता 
हूँ. 

जो बचा है 
वही हमारी सीमा 
है , जिसमे गिरने का 
खतरा हमेशा बना 
रहता है. मैं गिरने 
से पहले लिखता हूँ 
की कुछ बच जाऊं 
किसी शेष की तरह 
नहीं , किसी फुटनोट 
की तरह.   

गिरना मेरा अंत नहीं 
पर वो है जहाँ से 
यह कविता शुरू होती है, 
शायद मैं भी. 

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