मुझे कभी शब्दों का साथ नहीं मिला
जैसे विरासत में मिलती हो वो पोथियाँ
जिस पर समय अपने भूलने की परत छोड़ जाता
जैसे विरासत में मिलती हो वो पोथियाँ
जिस पर समय अपने भूलने की परत छोड़ जाता
ना ही मिलीं वो लोरियां
जिसमे नींद के अंतिम प्रहर का इंतज़ार करते करते शब्द थक कर खुदबखुद सो जाते
बस मिली एक खामोशी
एक अविश्वास में बैठी इंसानी परवाज़
भीड़ में सुनी पड़ती सड़के
और ऊंचे होते मकानों में
कुछ उखड़े हुए लोग
और ऊंचे होते मकानों में
कुछ उखड़े हुए लोग
मिला एक साथ अधूरा सा, एक गहराता शून्य
और सपनों से पथराई हजारों आखें
और सपनों से पथराई हजारों आखें
खून में डूबे हुए कुछ हाथ
और अँधेरे का एक वीभत्स नाच
और अँधेरे का एक वीभत्स नाच
भाषा की अंतिम गलियों तक सोयी
एक विरक्ति भी मिली
एक अभिन्न सी छुअन
जैसे सदियों चलता हो
लुका-छिपी का खेल
जिसमे निरंतर बसा एक डर
अपने पकडे जाने का
अपने पकडे जाने का
जिसमे धीरे धीरे उधड़ती परतें
एक उधार मांगे जीवन का एहसास ही
छोड़ जाती थीं
सुन्दर है
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