वो जब भी पास बैठती एक
साया अक्सर ही छोड़ जाती
और तैरती रौशनी में वो
साये कुछ धुंद की तरह छटक जाते
मै हमेशा सोचता उसे एक ख़त लिखूंगा
स्याही उस साये से ही मांगूंगा
मुझे पता है वो मना कर देगी
उसे मै बहलाऊंगा
पुचकार कर एक नाम दूंगा
वो अड़ी रहेगी मेरी मेज पर चिपके हुए
घंटो निहारती हुए मेरे टेबल लैम्प को
फिर घंटो तक चलता
रहेगा शब्द और रंग का
सिलसिला
वह रंगों में खोयी रहती
मेरे कैनवास के कोने पर धीरे धीरे पसरा करती
ब्रुश से आख मिचोली खेलती
और अक्सर ही एक तस्वीर उधार दे जाती
मै शब्दों में डूबा रहता
उसकी एक एक नरमी
को कैद करता रहता
उस कविता में जो
अभी लिखी जानी थी
शब्द और रंग का ऐसा मेल
शायद प्यार नहीं कुछ और ही
था
साया अक्सर ही छोड़ जाती
और तैरती रौशनी में वो
साये कुछ धुंद की तरह छटक जाते
मै हमेशा सोचता उसे एक ख़त लिखूंगा
स्याही उस साये से ही मांगूंगा
मुझे पता है वो मना कर देगी
उसे मै बहलाऊंगा
पुचकार कर एक नाम दूंगा
वो अड़ी रहेगी मेरी मेज पर चिपके हुए
घंटो निहारती हुए मेरे टेबल लैम्प को
फिर घंटो तक चलता
रहेगा शब्द और रंग का
सिलसिला
वह रंगों में खोयी रहती
मेरे कैनवास के कोने पर धीरे धीरे पसरा करती
ब्रुश से आख मिचोली खेलती
और अक्सर ही एक तस्वीर उधार दे जाती
मै शब्दों में डूबा रहता
उसकी एक एक नरमी
को कैद करता रहता
उस कविता में जो
अभी लिखी जानी थी
शब्द और रंग का ऐसा मेल
शायद प्यार नहीं कुछ और ही
था
वाह! बहुत सुन्दर.
ReplyDeletemera comment delete kyun kiya gaya...hain?!!
ReplyDeletetumne is post par comment hi nahi kiya tha...you commented on the other post "Lakeeren" and your comment is still available there..go and check please..
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